सुदर्शन प्रौढ़ शाखा के स्वयंसेवको ने मनाया विजयदशमी उत्सव
3 अक्टूबर, 2025 जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का श्री विजयदशमी उत्सव सुदर्शन प्रौढ़ शाखा संघ स्थान महावीर नगर द्वितीय पार्क महारानी फार्म पर संपन्न हुआ।
यह कार्यक्रम संघ के शताब्दी वर्ष के अवसर पर आयोजित किया गया जिसमे पुरुष, मातृ शक्ति, बालक एवं स्वयंसेवक उपस्थित रहे। कार्यक्रम निर्धारित समय प्रातः 8 बजे से शुरू हुआ। इस अवसर पर देवेश जी भड़ाना, चीफ इंजीनियर बिजली विभाग जयपुर, मुख्य अतिथि रहे। उन्होंने कहा कि समस्त देश वासियों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गंभीरता को समझना जरूरी है। उन्होंने कहा कि डॉक्टर हेडगेवार ने भी कल्पना नही की होगी की संघ विश्व का सबसे बड़ा संघ बन जायेगा। संघ राष्ट्र सेवा में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
मुख्य वक्ता के रूप में महेंद्र सिंघल, राजस्थान क्षेत्र कार्यकारिणी के सदस्य एवं सचिव, पाथेय कण संस्थान ने अपना संबोधन श्री कृष्ण के विराट स्वरूप रुपी समाज के बंधु एवं भगिनी कह कर शुरू किया। उन्होंने कहा कि आज का यह दिन शक्ति उपासना व विजय प्राप्ति का दिवस है। साथ ही साथ शस्त्र पूजा का दिन भी है। आज ही के दिन पांडवों ने अज्ञातवास के बाद शस्त्र धारण किये थे और हमारी सेना भी आज शस्त्र पूजा करती है।
उन्होंने कहा कि भारत की शक्ति अध्यात्मिक है जो कि रचनात्मक कार्यों में लगती है। सिंघल ने डॉ हेडगेवार के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि डॉक्टर साहब जन्मजात देशभक्त एवं संगठन शिल्पी थे। डॉक्टर साहब ने विजयदशमी 1925 को 17 युवाओं को साथ लेकर संघ रूपी जो बीज बोया वह आज वट वृक्ष के रूप मे विश्व का सबसे बड़ा संगठन बन गया। आपने अन्य लोगों द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समय संघ कहाँ था? के प्रश्न के जवाब में बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन के कारण डॉक्टर साहब को दो बार जेल में जाना पड़ा। एक बार 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में प्रखर भाषण पर राजद्रोह का मुकदमा चला और 1 वर्ष का कठोर कारावास हुआ दूसरी बार 1930 को सविनय अवज्ञा आंदोलन एवं जंगल सत्याग्रह में 10000 स्वयंसेवकों के साथ हिस्सा लिया जिससे उन्हें 9 माह का सश्रम कारावास हुआ। 1928 में अंग्रेज अधिकारी सांडर्स को मारने के पश्चात राजगुरु को छिपाने की व्यवस्था की। 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता हमारा लक्ष्य घोषित करने पर 26 जनवरी 1930 को देश भर में स्वतंत्रता मनाने की घोषणा की जिसे 26 जनवरी को सांयकाल 6:00 बजे सभी शाखों पर मनाया गया और कांग्रेस का अभिनंदन किया गया। आपने यह भी बताया कि 1928 से 1947 तक संघ में जो प्रतिज्ञा ली जाती थी वह यह थी कि “भारत को स्वतंत्र करने के लिए मैं संघ का स्वयंसेवक बना हूं। संघ का कार्य में प्रमाणिकता से, निस्वार्थ बुद्धि से तथा तन मन धन पूर्वक करूंगा और इस व्रत का में आजन्म पालन करूंगा।
संघ ने 100 वर्षों मे बहुत बाधाओं एवं संघर्षों का सामना किया है। पॉजिटिव बात यह रही कि इस समय समाज एवं प्रतिष्ठित बंधुओं का संघ को बहुत संबल मिला। इसलिए संघ राष्ट्र निर्माण मे पीछे मुड़ के नहीं देखा। आपने आरबन नस्लवाद से बचने की सलाह दी यह हमारे युवाओं को हमारे संस्कारों से तोड़ रही है। आपने पंच परिवर्तन एवं स्वदेशी जागरण पर बल दिया।
कार्यक्रम की विशेषताएँ-
1- शस्त्र पूजा
2- दंड योग, योग एवं आसन
3- अमृत वचन
4- काव्य गीत