‘‘कौन देस को वासी‘‘ उपन्यास में मनुष्यता का संदेश
8 जनवरी, 23 जयपुर। आज स्पंदन महिला साहित्यिक एवं शैक्षणिक संस्थान जयपुर और राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में प्रख्यात साहित्यकार डॉ. सूर्य बाला जी के बहुचर्चित उपन्यास ‘कौन देस को वासी, वेणु की डायरी’ पर संगोष्ठी का आयोजन अकादमी परिसर में किया गया।
कार्यक्रम का आग़ाज़ शिवानी जयपुर की मधुर सरस्वती वंदना से हुआ। स्पंदन अध्यक्ष नीलिमा टिक्कू ने बताया कि सूर्यबाला जी पर साहित्य समर्था पत्रिका विशेषांक प्रकाशित किया जा चुका है। वे कहानी.उपन्यास और व्यंग्य की कई किताबें लिख चुकी हैं। उनके इस उपन्यास को 2020 पृथ्वीनाथ भान सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। विदेश में पढ़ाई और नौकरी करते हुए युवाओं और उनके अभिभावकों की मनःस्थितियों को लेकर मानवीय संवेदनाओं के इर्द गिर्द बहुत ख़ूबसूरती से बुना गया यह उपन्यास दो संस्कृतियों के सकारात्मक-नकारात्मक पहलुओं को दर्शाता विशाल कैनवास पर लिखा गया सशक्त उपन्यास है।
कार्यक्रम के आरम्भ में राजस्थान हिन्दी अकादमी के निदेशक श्री बजरंग लाल सैनी ने सबका स्वागत करते हुए राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी के साहित्य के प्रति किये जा रहे महत्वपूर्ण कार्यों के बारे में बताया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि फ़ारूक़ आफ़रीदी ने उपन्यास को एक मील का पत्थर बताया जिसमें प्रवासी भारतीयों और अभिभावकों का विस्तार से वर्णन है। अंतिम सत्य मनुष्यता बनी रहे यही कामना है। प्रो.प्रबोध गोविल ने कहा ये उपन्यास अल्टिमेट है। डॉ. सुषमा सिंघवी ने उपन्यास में पराए देश के विभिन्न पक्षों पर विस्तार से चर्चा की। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए श्री नन्द भारद्वाज ने उपन्यास की नीर क्षीर समी़क्षा की।
सूर्यबाला जी ने कहा कि प्रवासी भारतीय होना भारतीय समाज की महत्वकांक्षा भी है, सपना भी है। क्या है मनुष्य की प्रगति और सभ्यताओं के चरम विकास की नियति-लालसाओं के चक्रवात में फँसे जब हम अपनी धरती छोड़ते हैं तो कब तक और कितनी छूट पाती है वह हमसे-अपने देश में रहते हुए हम क्यों नहीं करते उसे महिमा मंडित? कहाँ किस बिंदु पर मिलती है सुख सुविधाओं, सच और झूठ, सफलता और असफलता की विभाजक रेखाएँ और कहाँ पहुँच कर सब कुछ पाने के बाद भी जीवन छूँछा होने लगता है । कहां पूरी होती है जीवन की असली तलाश उत्तर आधुनिकता ने समाज को-विवाह संस्था-सम्बंधों का सन्नाटा मचा हुआ है। रिश्ते-मानवीय सम्बंध से परे हम कौन सा जीवन जी रहे हैं। दर्द का हद से गुज़र जाना ही उपन्यास लिखने का कारण बना इसी पर यह उपन्यास केन्द्रित है।
इस अवसर पर प्रवासी भारतीय लेखिका डॉ. सुधा ओम ढींगरा पर आधारित साहित्य समर्था के विशेषांक का लोकार्पण सभी मंचस्थ अतिथियों द्वारा किया गया। कार्यक्रम में प्रोफ़ेसर लाड कुमारी जैन , डॉ. बीना अग्रवाल, डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल , डॉ. विद्ध्या जैन, डॉ. मधुलिका शर्मा ने सूर्यबाला जी से प्रश्न पूछे और उन्होंने उनकी जिज्ञासाओं का जवाब दिया। डॉ. संगीता सक्सेना ने कार्यक्रम का सफल संचालन किया।