राजू श्रीवास्तव उर्फ़ गजोधर का सफरनामा
20 सितम्बर, 22 कानपुर। साल 1963 में कानपुर में कवि रमेश श्रीवास्तव उर्फ बलई काका के यहाँ जन्म लेने वाले राजू श्रीवास्तव को बचपन से ही फ़िल्मी सितारों की मिमिक्री करने का शौक था। उनका मूल गाँव बीघापुर हैं जो उन्नाव जिले में पड़ता हैं।
कॉमेडी की दुनिया में शायद उन्हें सबसे ज़्यादा नाम अमिताभ बच्चन की मिमिक्री करके ही मिला, लेकिन उन्होंने कॉमेडी करना उस दौर में शुरू किया था, जब कोई सोशल मीडिया या टेक्नोलॉजी नहीं हुआ करती थी। उनका पहला कॉमेडी स्केच ‘हंसना मना है’ भी एक ऑडियो कैसेट की शक्ल में सामने आया था।
राजू श्रीवास्तव ने अपने एक इंटरव्यू में इसका ज़िक्र करते हुए कहा था, “ये 1980 के दशक की बात है, उन दिनों इतने सारे चैनल नहीं हुआ करते थे सिर्फ़ दूरदर्शन था। मैं उस ज़माने का आदमी हूँ, उस समय पेन ड्राइव, डीवीडी या सीडी ये सब नहीं था। उस समय हमारे ऑडियो कैसेट रिलीज़ होते थे, जो कभी-2 फंस जाते थे तो उनमें पैंसिल डालकर ठीक करना होता है। टी सिरीज़ में हमारा कैसेट आया था।”
राजू श्रीवास्तव ने आगे बताया था कि ”उस ज़माने की ख़ासियत ये थी कि कैसेट भी हिट हो गया था, लेकिन बड़ी चुलबुलाहट होती थी, कि हम जिस रिक्शे में बैठे हैं। उस रिक्शे में हमारा कैसेट बज रहा है, लेकिन वो सुनने वाला हमें जानता ही नहीं, कभी-कभी हम उसे छेड़ने के लिए कह भी देते थे, ये क्या सुन रहे हो यार, बंद करो कुछ अच्छा लगाओ। इस पर रिक्शे वाला कहता था कि अरे, नहीं भईया, कोई श्रीवास्तव है, बहुत हँसाता है।”
राजू ने एक और किस्सा साझा किया था, ”एक बार की बात है कि हम ट्रेन में अपने एक किरदार मनोहर के अंदाज़ में किसी को शोले की कहानी सुना रहे थे, ऊपर की बर्थ पर एक चाचा सो रहे थे, हमें सुनकर वो नीचे उतरे और बोले कि ऐसा है, तुम ये जो कर रहे हो, इसको और ढंग से करो। इसमें थोड़ी और मेहनत करके इसको जो है (कैसेट बनवाओ) बंबई में जाओ, गुलशन कुमार का होगा स्टूडियो वहाँ, तुम वहाँ सुनाओ अपना ये। तुम्हारा भी कैसेट आएगा, एक श्रीवास्तव का कैसेट निकला है, उससे आइडिया लो।”
साल 1982 में मुंबई पहुँचने वाले राजू श्रीवास्तव ने शुरुआती दौर में ऑर्केस्टा के साथ काम किया. और पहली बार फ़ीस के रूप में उन्हें मात्र 50 रुपए मिले बाद में 100 हो गयी जो लगभग दो-तीन साल तक मिलता रहा। फ़िल्मों में उनका सफ़र सलमान ख़ान की पहली फ़िल्म ‘मैंने प्यार किया’ से हुआ। इसके बाद उन्होंने बाज़ीगर से लेकर बॉम्बे टू गोवा और आमदनी अठन्नी और ख़र्चा रुपय्या जैसी कई फ़िल्मों में भी काम किया।
लेकिन उन्हें देशव्यापी प्रसिद्धि “द ग्रेट इंडियन लॉफ़्टर चैलेंज” से मिली, जिसमें भी उन्होंने अपनी शानदार कॉमेडी से लोगों को अपना दीवाना बना दिया।
राजू श्रीवास्तव को ऐसे कॉमेडियन के रूप में भी जाना जाता है, जो बिना तैयारी अचानक बातों-बातों में चुटकुले सुना सकते हैं। एक और इंटरव्यू में जब उनके ख़ास अतरंगी कपड़ों को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा था, “मेरे शो यूपी-बिहार जैसे क्षेत्रों में लगने वाले मेलों में ज्यादा होते हैं, जहाँ भारी भीड़ जमा होती है, तो अतरंगी पहनो तो लोगों को दूर से दिख जाता हूँ कि वो देखो वो जा रहा है, वो खड़ा है। और मैंने चोटी इसलिए रखी है ताकि लोग मुझे चोटी का कलाकार समझें।”
हालाँकि एक दौर ऐसा भी आया, जब कपिल शर्मा का कॉमेडी शो उस दौर के सभी कॉमेडियन पर हावी हो गया, लेकिन राजू श्रीवास्तव इन सबके बीच अपनी ख़ास जगह बना पाने में सफल रहे।
नवंबर 2017 में एक चैनल को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि राजू श्रीवास्तव मेरा घर का नाम है, लेकिन स्कूल-कॉलेज का नाम सत्य प्रकाश है। अब चूँकि राजू बोलने में अच्छा लगता है, राजू एक लड़के या बच्चे का नाम लगता है और मैं चाहता हूँ कि हमेशा बच्चा ही रहूँ। जहाँ तक बात बचपन की बात करूँ तो स्कूल में टीचर्स की कॉपी करने के लिए डाँट पड़ती थी। इंदिरा गांधी की मिमिक्री करता था। स्कूल के खेल टूर्नामेंटों में मस्ती-मस्ती में कमेंट्री करता था।
मैंने शुरू में अमिताभ की फ़िल्में देखी फिर चाहे वो शोले हो या दीवार हो। तो उनकी नकल करने लगा, उनकी आवाज़ निकालने लगा। दोस्त मुझे जूनियर अमिताभ कहा करते थे, छोटे-बड़े शहरों से लोग मुझे बुलाने लगे थे, दुर्गा पूजा हो, दशहरे का मौका हो वहाँ लोग डायलॉग सुनाने के लिए मुझे बुलाया करते थे।
राजू श्रीवास्तव नहीं मानते कि ग्रेट इंडियन लॉफ्टर चैलेंज बहुत बड़ा मंच था, उन्होंने एक चैनल को दिए इंटरव्यू में बताया था। एक बार की आप ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज को भूल जाइए, तो प्लेटफॉर्म बहुत छोटा और बेकार सा था। मेरे पास ऑफ़र आया था कि नए-नए लड़कों का एक प्रोग्राम शुरू हो रहा है, चाहे सुनील पाल हों, अहसान कुरैशी, नवीन प्रभाकर किसी को कोई नहीं जानता था, उसमें मुझे शामिल किया जा रहा था। मुझे तो लोगों ने रोका कि ऐसे प्रोग्राम में मत जाओ जिसमें जॉनी लीवर भी नहीं है, जावेद जाफ़री भी नहीं है और अरशद भी नहीं है। मेरे कई कैसेट ‘हंसी का हंगामा’, ‘हंसते रहो’ बाज़ार में आ गए थे। मैंने कई फ़िल्मों में भी काम किया था ‘मैंने प्यार किया’, मैं प्रेम की दीवानी हूँ, मिस्टर आज़ाद, वाह तेरा क्या कहना, आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपय्या. कई बार डायरेक्टर को मना कर चुका था. लेकिन मैंने अमिताभ बच्चन को आदर्श मानते हुए तैयार हुआ कि ‘जो दिखता है वो बिकता है।’ मैंने कई बार इस शो के लिए मना कर दिया था लेकिन मन मार के इसमें गया और वहीं से सबकी तक़दीर बदल गई। जिसने भी इसमें हिस्सा लिया वो स्टार बन गए।
राजू श्रीवास्तव ने राजनीति में भी अपनी किस्मत आजमाई थी। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें समाजवादी पार्टी की तरफ से कानपुर का टिकट मिला था। बाद में उन्होंने भाजपा में शामिल हो गए। अंतिम समय तक वो उत्तर प्रदेश फ़िल्म बोर्ड के चेयरमैन थे। उन्होंने अपनी अंतिम सांस आज सुबह करीब 10 बजे एम्स अस्पताल दिल्ली में ली वो करीब 40 दिनों से ICU में भर्ती थे। 10 अगस्त 22 को जिम में वर्कऑउट करते समय उन्हें दिल का दौरा पड़ा था जिसके बाद से वो एम्स में भर्ती थे। उनके 80% दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था।
उनके निधन पर समस्त बॉलीवुड और राजनीतिक गलियारों में गम का माहौल हो गया। सभी ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया।
अलविदा राजू श्रीवास्तव…!!