जानिए Lockdown को – क्या हैं धारा 188?

भारत में तेजी से पांव पसारते WHO द्वारा घोषित वैश्विक महामारी कोरोना वायरस पर काबू पाने के लिए केंद्र सरकार ने पूरे देश में 21 दिनों तक लॉक डाउन कर दिया है। पीएम मोदी ने कल मंगलवार, 24 मार्च 2020 को देर शाम 8 बजे देश को संबोधित करते हुए रात 12 बजे से सम्पूर्ण देश में लॉक डाउन लागू होने की घोषणा की थी। इसके साथ ही पूरे देश में धारा 188 भी लागू हो गई है।

क्या है धारा 188? क्या हैं इसके प्रावधान? किस कानून के तहत लागू किया गया है लॉक डाउन? इसके नियमों का उल्लंघन करने पर क्या हो सकती है कार्रवाई? क्या मिल सकती है सजा?

इन सभी सवालों के जवाब आपको यहां नीचे बताए जा रहे हैं :-

सबसे पहले जान लें कि कोरोना वयारस से लड़ने के लिए लॉक डाउन की घोषणा महामारी कानून, 1897 के तहत लागू किया गया है। इसी कानून में प्रावधान किया गया है कि अगर लॉक डाउन में सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों का कोई व्यक्ति उल्लंघन करता है, तो उस पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 188 के तहत कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

क्या है IPC की धारा 188 :-

महामारी कानून, 1897 के सेक्शन 3 में इस बात का जिक्र किया गया है कि अगर कोई प्रावधानों का उल्लंघन करता है, सरकार / कानून के निर्देशों / नियमों को तोड़ता है, तो उसे आईपीसी की धारा 188 के तहत दंडित किया जा सकता है। इस संबंध में किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा दिए निर्देशों का उल्लंघन करने पर भी आपके खिलाफ ये धारा लगाई जा सकती है।

यहां तक कि किसी के ऊपर ये धारा लगाने व कानूनी कार्रवाई करने के लिए ये भी जरूरी नहीं कि उसके द्वारा नियम तोड़े जाने से किसी का नुकसान हुआ हो या नुकसान हो सकता हो। अगर आपको सरकार द्वारा जारी उन निर्देशों की जानकारी है, फिर भी आप उनका उल्लंघन कर रहे हैं, तो भी आपके ऊपर धारा 188 के तहत कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

क्या मिल सकती है सजा :- IPC की धारा 188 के तहत दो प्रावधान हैं-
पहला – अगर आप सरकार या किसी सरकारी अधिकारी द्वारा कानूनी रूप से दिए गए आदेशों का उल्लंघन करते हैं, या आपकी किसी हरकत से कानून व्यवस्था में लगे शख्स को नुकसान पहुंचता है, तो आपको कम से कम एक महीने की जेल या 200 रुपये जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है।

दूसरा – अगर आपके द्वारा सरकार के आदेश का उल्लंघन किए जाने से मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा, आदि को खतरा होता है, तो आपको कम से कम 6 महीने की जेल या 1000 रुपये जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है।

क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, 1973 के पहले शेड्यूल के अनुसार, दोनों ही स्थिति में जमानत मिल सकती है और कार्रवाई किसी भी मैजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है।

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